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चेहरे ही तो हैं अक्सर बदल जाते हैं कभी कभी नकाब

चेहरे ही तो हैं 
अक्सर बदल जाते हैं 
कभी कभी नकाब ओढ कर 
कभी कभी नकाब उतार कर 
कभी कभी मौसम के साथ 
कभी कभी मिजाज के साथ
कभी कभी कलम के साथ 
कभी कभी बोल के साथ
कभी कभी तख्त के साथ
चेहरे ही तो हैं
देहलीज शमशान की थोड़ी हैं 
जो हर शख्स झुक जायेगा 
चेहरे ही तो है
महल का फाटक थोडी है 
आ कर हर शख्स जहा रुक जायेगा

©sanjupandit नकाब
चेहरे ही तो हैं 
अक्सर बदल जाते हैं 
कभी कभी नकाब ओढ कर 
कभी कभी नकाब उतार कर 
कभी कभी मौसम के साथ 
कभी कभी मिजाज के साथ
कभी कभी कलम के साथ 
कभी कभी बोल के साथ
कभी कभी तख्त के साथ
चेहरे ही तो हैं
देहलीज शमशान की थोड़ी हैं 
जो हर शख्स झुक जायेगा 
चेहरे ही तो है
महल का फाटक थोडी है 
आ कर हर शख्स जहा रुक जायेगा

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