चेहरे ही तो हैं अक्सर बदल जाते हैं कभी कभी नकाब ओढ कर कभी कभी नकाब उतार कर कभी कभी मौसम के साथ कभी कभी मिजाज के साथ कभी कभी कलम के साथ कभी कभी बोल के साथ कभी कभी तख्त के साथ चेहरे ही तो हैं देहलीज शमशान की थोड़ी हैं जो हर शख्स झुक जायेगा चेहरे ही तो है महल का फाटक थोडी है आ कर हर शख्स जहा रुक जायेगा ©sanjupandit नकाब