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पल्लव की डायरी चुभ रही हवा चुभन बनकर तन मन कोई सहल

पल्लव की डायरी
चुभ रही हवा चुभन बनकर
तन मन कोई सहला रहा हो
गुलाबी हुये गाल कोई थप थपा रहा हो
मस्ती में माला माल हुये हम
अंग अंग अंगड़ाई ले रहा है
चुनर धानी उड़ी उड़ी जाये
बसन्त अपना जलवा दिखा रहा है
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #Freedom बसन्त अपना जलवा दिखा रहा है
पल्लव की डायरी
चुभ रही हवा चुभन बनकर
तन मन कोई सहला रहा हो
गुलाबी हुये गाल कोई थप थपा रहा हो
मस्ती में माला माल हुये हम
अंग अंग अंगड़ाई ले रहा है
चुनर धानी उड़ी उड़ी जाये
बसन्त अपना जलवा दिखा रहा है
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #Freedom बसन्त अपना जलवा दिखा रहा है