मेरे बचपन की वो मीठी-मीठी सी यादें, कुछ कही कुछ अनकही सी बातें, सोमवार से शनिवार तक स्कूल जाने की तैयारी, रविवार सुबह देर से उठने की बारी, वो खिलोने टूट जाने पर रोना वो पेंसिल तो कभी रबड़ का खोना, लगे दादी माँ का गोदरेज,जादू का पिटारा, कभी निकले उससे बिस्किट कभी नमकपारा, वो मम्मी का देर तक जागने पर डांटकर सुलाना, वो पापा का हर संडे को बाहर ले जाना, आज न रहा वो बचपन,न रही वो कहानी, सिर्फ यादो में ही सीमित रह गए, वो कहानियों के राजा रानी, वो स्कूल के दिन वो syllabus कि किताबें, क्या लौटा सकता हैं कोई, मेरे बचपन के वो दिन, मेरे बचपन की वो यादें।। #OpenPoetry #purna