मैं डायरी हूं मैं डायरी हूं चंद लफ्ज़ों की, मुझे वक्त निकाल कर पढ़ लिया करो.. मैं लिखती हूं आपने ही पन्नों पर, कुछ तुम भी मुझ में लिख दिया करो.. मैं उलझ जाती हूं इन हवाओं के झोंको से, कभी मुझे तुम समेट भी लिया करो.. डर लगता है इन आग की लपटों से, मुझे भी कभी गले से लगा लिया करो.. तुम तो जाग जाते हो सुबह चार बजे, किसी रोज़ मुझे भी जगा दिया करो.. मै रो कर भीगा देती हूं आपने पन्नों को, कभी धूप दे कर सूखा दिया करो.. धूल जमी पड़ी है कहीं अर्शे से मुझ पर, कभी वक्त निकाल कर झटक दिया करो.. मैं दूंगी तुम्हारे हर सवाल का ज़वाब, कभी सवाल भी मुझसे कर लिया करो.. मैं ज़रूरत पूरी करती हूं हर किसी की, कभी तुम भी तो मेरी ज़रुरत समझ लिया करो..! ©Devrajsolanki #poetry #hindipoetry #Books #dayari #kavita #Poet #writer #devrajsolanki #Book