तुम कहते हैं इस शहर में गम बहुत है हम तो उस शहर के हैं ए दोस्त। जिसकी हवा में भी बारूद महकता है। कभी गुलों से गुलजार था जो आशियां। वो अब आग के दरिया सा दहकता है। इबादत से गूंजती थी जो वादी। अब बच्चों की जुबान से जेहाद का सबक निकलता है। हम तो उस शहर के हैं ए दोस्त। जिसकी हवा में भी बारूद महकता है। झुके है बन्दूकों के बोझ से वो कन्धें, था जिन पर कभी किताबों का वस्ता चमकता। स्याही से सने थे जो हाथ कभी , अब उनसे लहू टपकता है। हम तो उस शहर के हैं ए दोस्त। जिसकी हवा में भी बारूद महकता है। फिजा की बात ना पूछो थी कितनी निराली, फूलों, शिकारो से भरी थी जो वादी। अब सूरज भी डरते डरते निकलता है कभी वतन तो कभी मजहब के नाम। इन्सान ही इन्सान के हाथों मरता है। सड़कों पर इंसानियत का कत्ल करता है। हम तो उस शहर के हैं ए दोस्त। जिसकी हवा में भी बारूद महकता है। .sehgal tribute to all peoples who lost their lives in war.