पल्लव की डायरी मेरे हाथ मे लकीरे उकेरी ही नही गयी किसी भी फकीर से किस्मत पढ़ी नही ग़यी में भी पेट के बोझ से दबी हुयी हूँ किताबे पढ़ने की उम्र अभी ग़यी नहीं चलते हुकूमतों के मेरे हक में प्रोग्राम मेरे घर से अभी तक गरीबी ग़यी नही बचपन बोझा दोहता है देखकर शर्म किसी मे बची नही दरिया पैसों का शहरों में बहता है वो नदी गांव तक मुड़ी ही नही प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" वो नदी गांव तक मुड़ी ही नही #Labourday