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शीर्षक-सीनियरस् शुरूआत हुई एक छोटे से स्कूल से तब

शीर्षक-सीनियरस्
शुरूआत हुई एक छोटे से स्कूल से तब एज़ ए फ्रैशर ही जांइन किया था मैंने 2017 में।
पर सैलरी सीनियरस् से थोङी सी ही कम थी और यही बात शायद हमारे सीनियरस् को पंसद नहीं थी,मैनेजमेंट के सामने रखी भी गयी ये बात,मैनेजमैंट ने सीधे कहा कमीयां या गलतियां ढूंढकर दिखा पाओ उसके काम में तब कहना कुछ।तब शायद पहली बार दुनियादारी को देखा था मैंने सामने मीठे बनते थे सब और पीठ पीछे एक-दूसरे की बुराई,एक-दूसरे को नीचा दिखाना आदि।मैं अपने काम से काम रखने वाली लङकी,इन सब बातों से कोशो दूर।मीटिंग में सबसे अपनी परेशानी बताने को कहा गया और आइ थिंक यही पर सबसे बङी गलती की थी हमने ईमानदारी से मैनेजमेंट के सामने बोल दिया कि स्टाफ आॅफ योर स्कूल इज वैरी बैड,अपने काम की जगह दूसरे के काम पर ज्यादा ध्यान देते हैं सब और जानबूझकर गलतियां करवाते नये टीचरस् से,फिर क्या था?क्लास लगाई गई सबकी और चढ़ गये सबकी आंखों में।अब जिन बातों में गलतियां नहीं निकालनी चाहिए वहां भी गलतियां निकालना शुरू जैसे आपने साङी कैसे पहन रखी है,सेपटिफिन कैसे लगा रखा है, बाल कैसे बांध रखे है आदि और हम क्या कम नालायक है ये नहीं कि मुंह बंद रखे बोल दिया कि पढ़ाने आते है हम यहां या फैशन दिखाने।तभी सीनियर मैम ने कहा कि मैम आप ऐसे आयेंगी स्कूल तो बच्चे भी आपसे यही सिखेंगे तो हमने भी बोल दिया साॅरी मैम पर हम पूरे नियम-अनुशासन और ईमानदारी से अपना काम करते है तो बच्चों को अगर सिखना ही होगा तो ये भी तो सिखना चाहिए न हमसे।हमम..बस आफत कर ली इतना कहकर,आॅफिस बुला लिया गया कि मैम आपने इन्सल्ट की अपने सीनियर की पर भगवान डरते कहा थे हम सच कहने से बोल दिया सर हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं था पर मैम हम पढ़ाने आते है यहां अगर कमी ही निकालनी है तो हमारे काम में निकाली जाये,ताकि हम सुधार करें अपनी कमियों में फालतू कि बातों में कमियां निकालना सही है क्या?अपने सीनियरस् का पक्ष लेते हुए मैनेजमेंट बोला मैम आपसे सीनियर है वो अगर कुछ कहा उन्होंने तो आपके भले के लिए ही कहा होगा,साॅरी बोलकर बात खत्म कीजिए।पहली बार अपनी सच्चाई की आदत पर तब दुख हुआ था हमें। अब क्या आये दिन फालतू के कमेंट करना इनडारेक्टली हमें टारगेट करना,फालतू की कमियां निकालना हर दिन का टार्चर पर फिर भी रुकी थीं क्योंकि अपने बच्चों से बहुत प्यार था हमें और बच्चों को भी हमसे। टीचर अच्छी हूं बच्चों के साथ-साथ मैनेजमेंट भी कहता था ये बात पर सीनियरस् को फूटी आंख न सुहाती थी जबकि बोलती ही बहुत कम थी फिर भी और उस टाइम मांइड बङा शार्प था तो अरेजमेंट के सभी सब्जेक्टस् में वही सब्जेक्टस् पढ़ा देती थी,अब इसमें हमारी गलती क्या थी कि बच्चों को अपने सब्जेक्टस् टीचरस् से ज्यादा हमसे पढ़ना अच्छा लगता था पहुंचते मैनेजमैंट के पास कि इन मैम को हमारे क्लास में एक पीरियड जरूर दीजिए,हमम..एक्चूली ऐसा है न हमारे माँ-पापा की गलती है सब उन्होंने कभी हमें झूठ बोलना, चापलूसी करना,अपनी कमियों-गलतियों का दोष किसी और पर डाल देना, पंचायत करना ये सब सिखाया ही नहीं तो हम ऐसे कभी बन ही नहीं पाये,जबकि दुनियां चलती ऐसे ही लोगों से है।अब ये नहीं पता कि सीनियरस् को क्या परेशानी थी हमसे कि हर दिन कुछ न कुछ हरकत कर परेशान करते रहते थे,हम जूनियर थे तो अब चुप ही रहते थे पर दिमाग बहुत परेशान होने लगा था और हमें भी अपने से बङों को जवाब देना और बार-बार अपनी सफाई देना अच्छा नहीं लग रहा था वो भी उन बातों की जो हमने की नहीं हमसे करवाई थी सीनियरस् ने और बाद में पलटी खा गये तो आखिरकार छोङ दिया। पर कहते है न जो होता है अच्छे के लिए होता है इसके बाद ही गये थे उस जगह जहां एक परिवार मिला,जहां सिर्फ और सिर्फ वर्क देखा गया,जहां पर सच में फील हुआ कि आखिर सीनियरस् को सीनियरस् क्यों कहते है?और रियल में आखिर सीनियर होने का मतलब क्या होता है?प्यार हो गया था उस परिवार से इतना कि करियर भूल गये थे अपना पर जब अपने सीनियरस् को उनके गोल को अचीव करते देखा तो हमने भी सोचा चलो अब अपने करियर भी ध्यान दिया जायें और सच बताये तो इसके लिए डांट सीनियरस् ने ही लगाई हमें ।
हमें नहीं पता कि हम अच्छे है या बुरे पर ये तो सोचने वाली बात है कि एक वो जगह भी थी जहां पर बहुत सारा प्यार मिला और रिश्ते बनाये हमने और हालांकि सभी वयस्त है अपनी-अपनी लाइफ में पर आज भी जब भी बात करें तो हमारे लिए समय निकाल लेते है सब और कोई परेशानी शेयर करूं तो उसका हल भी बता देते है हमको।

©Miss mishra #सीनियरस्

#Hill
शीर्षक-सीनियरस्
शुरूआत हुई एक छोटे से स्कूल से तब एज़ ए फ्रैशर ही जांइन किया था मैंने 2017 में।
पर सैलरी सीनियरस् से थोङी सी ही कम थी और यही बात शायद हमारे सीनियरस् को पंसद नहीं थी,मैनेजमेंट के सामने रखी भी गयी ये बात,मैनेजमैंट ने सीधे कहा कमीयां या गलतियां ढूंढकर दिखा पाओ उसके काम में तब कहना कुछ।तब शायद पहली बार दुनियादारी को देखा था मैंने सामने मीठे बनते थे सब और पीठ पीछे एक-दूसरे की बुराई,एक-दूसरे को नीचा दिखाना आदि।मैं अपने काम से काम रखने वाली लङकी,इन सब बातों से कोशो दूर।मीटिंग में सबसे अपनी परेशानी बताने को कहा गया और आइ थिंक यही पर सबसे बङी गलती की थी हमने ईमानदारी से मैनेजमेंट के सामने बोल दिया कि स्टाफ आॅफ योर स्कूल इज वैरी बैड,अपने काम की जगह दूसरे के काम पर ज्यादा ध्यान देते हैं सब और जानबूझकर गलतियां करवाते नये टीचरस् से,फिर क्या था?क्लास लगाई गई सबकी और चढ़ गये सबकी आंखों में।अब जिन बातों में गलतियां नहीं निकालनी चाहिए वहां भी गलतियां निकालना शुरू जैसे आपने साङी कैसे पहन रखी है,सेपटिफिन कैसे लगा रखा है, बाल कैसे बांध रखे है आदि और हम क्या कम नालायक है ये नहीं कि मुंह बंद रखे बोल दिया कि पढ़ाने आते है हम यहां या फैशन दिखाने।तभी सीनियर मैम ने कहा कि मैम आप ऐसे आयेंगी स्कूल तो बच्चे भी आपसे यही सिखेंगे तो हमने भी बोल दिया साॅरी मैम पर हम पूरे नियम-अनुशासन और ईमानदारी से अपना काम करते है तो बच्चों को अगर सिखना ही होगा तो ये भी तो सिखना चाहिए न हमसे।हमम..बस आफत कर ली इतना कहकर,आॅफिस बुला लिया गया कि मैम आपने इन्सल्ट की अपने सीनियर की पर भगवान डरते कहा थे हम सच कहने से बोल दिया सर हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं था पर मैम हम पढ़ाने आते है यहां अगर कमी ही निकालनी है तो हमारे काम में निकाली जाये,ताकि हम सुधार करें अपनी कमियों में फालतू कि बातों में कमियां निकालना सही है क्या?अपने सीनियरस् का पक्ष लेते हुए मैनेजमेंट बोला मैम आपसे सीनियर है वो अगर कुछ कहा उन्होंने तो आपके भले के लिए ही कहा होगा,साॅरी बोलकर बात खत्म कीजिए।पहली बार अपनी सच्चाई की आदत पर तब दुख हुआ था हमें। अब क्या आये दिन फालतू के कमेंट करना इनडारेक्टली हमें टारगेट करना,फालतू की कमियां निकालना हर दिन का टार्चर पर फिर भी रुकी थीं क्योंकि अपने बच्चों से बहुत प्यार था हमें और बच्चों को भी हमसे। टीचर अच्छी हूं बच्चों के साथ-साथ मैनेजमेंट भी कहता था ये बात पर सीनियरस् को फूटी आंख न सुहाती थी जबकि बोलती ही बहुत कम थी फिर भी और उस टाइम मांइड बङा शार्प था तो अरेजमेंट के सभी सब्जेक्टस् में वही सब्जेक्टस् पढ़ा देती थी,अब इसमें हमारी गलती क्या थी कि बच्चों को अपने सब्जेक्टस् टीचरस् से ज्यादा हमसे पढ़ना अच्छा लगता था पहुंचते मैनेजमैंट के पास कि इन मैम को हमारे क्लास में एक पीरियड जरूर दीजिए,हमम..एक्चूली ऐसा है न हमारे माँ-पापा की गलती है सब उन्होंने कभी हमें झूठ बोलना, चापलूसी करना,अपनी कमियों-गलतियों का दोष किसी और पर डाल देना, पंचायत करना ये सब सिखाया ही नहीं तो हम ऐसे कभी बन ही नहीं पाये,जबकि दुनियां चलती ऐसे ही लोगों से है।अब ये नहीं पता कि सीनियरस् को क्या परेशानी थी हमसे कि हर दिन कुछ न कुछ हरकत कर परेशान करते रहते थे,हम जूनियर थे तो अब चुप ही रहते थे पर दिमाग बहुत परेशान होने लगा था और हमें भी अपने से बङों को जवाब देना और बार-बार अपनी सफाई देना अच्छा नहीं लग रहा था वो भी उन बातों की जो हमने की नहीं हमसे करवाई थी सीनियरस् ने और बाद में पलटी खा गये तो आखिरकार छोङ दिया। पर कहते है न जो होता है अच्छे के लिए होता है इसके बाद ही गये थे उस जगह जहां एक परिवार मिला,जहां सिर्फ और सिर्फ वर्क देखा गया,जहां पर सच में फील हुआ कि आखिर सीनियरस् को सीनियरस् क्यों कहते है?और रियल में आखिर सीनियर होने का मतलब क्या होता है?प्यार हो गया था उस परिवार से इतना कि करियर भूल गये थे अपना पर जब अपने सीनियरस् को उनके गोल को अचीव करते देखा तो हमने भी सोचा चलो अब अपने करियर भी ध्यान दिया जायें और सच बताये तो इसके लिए डांट सीनियरस् ने ही लगाई हमें ।
हमें नहीं पता कि हम अच्छे है या बुरे पर ये तो सोचने वाली बात है कि एक वो जगह भी थी जहां पर बहुत सारा प्यार मिला और रिश्ते बनाये हमने और हालांकि सभी वयस्त है अपनी-अपनी लाइफ में पर आज भी जब भी बात करें तो हमारे लिए समय निकाल लेते है सब और कोई परेशानी शेयर करूं तो उसका हल भी बता देते है हमको।

©Miss mishra #सीनियरस्

#Hill
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Miss mishra

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