बड़ी देर से आए तुम बहुत बुलाया तुमको, तन भिगोकर मन ओत-प्रौत कर प्रसन्न किया तुमने हमको। प्रथम बूंद जब गिरा मुझपर, याद आया उनका पहला प्रेम पत्र। मुझे मालुम है युक्ति तुमने ही की थी उस दिन, ताकि प्रेम रोग में ह्रदय व्यथा बड़े प्रतिदिन। धीरे-धीरे बरस रहे थे तुम फिर बिजली के गरज संग साजिश,,, की तुमने, मेरे आँखो में गरजन का भय देख बाहो में भर लिया उसने। नजरे चुराकर भाग गयी मैं, यौवन की नई तरंगे भर दी तुम्हारी युक्ति और उसके स्पर्श ने बीते कुछ दिन खुशी से, उन्मुक्त हुई मैं प्रेम से। वो अपना कल बनाने के लिए हमसे जुदा हो गए, तुम भी अगले बरस फिर तेरे यौवन की मीठी याद लाऊगा,,, कह चले गए। अंतिम बूँदो मे मुझे भिगाकर, कहा अपने परदेशी को हंसकर विदा कर। इस सावन देर से ही सही तुम फिर आए हो, साथ मेरे प्रीत की याद भी लाए हो। अब एक इच्छा और पूरी कर दो, उनके शहर में बरसकर मेरी तरह उन्हें भी तड़पा दो। 🌹 🌹 Vinni gharami 🖋🖋 #barish_ka_phla_pyr