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आकाशगंगा में जितने विचरते हैं तारे अंश जितना भी इं

आकाशगंगा में जितने विचरते हैं तारे
अंश जितना भी इंसान बसते नहीं भू में हमारे।
हर तारा फिर भी अपनी चमक पर करता विश्वास
बिना किसी दूसरे तारे के सीमाओं के जाकर पास।
हम इंसान लड़ लेते है हर छोटी मोटी बात पर
कभी धर्म का नाम लेकर, कभी जात पात पर।
अनगिन तारों से मिल बनी आकाशगंगा कितनी सघन है
हम भी ऐसे रह सकते है,अगर पवित्र हो जाये हमारा मन है।

©Kamlesh Kandpal
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