मेरे सतगुरू है परदेश लिखूँ कस पाती । मेरा उमड़ा जोबन ज्ञान विरह की छाती ।।टेर।। सुख सम्पति परिवार कुटुम्ब दुखदाई ।यह बादल की सी छाँह-सदा थिर नाहिं।। मेरे दिल ने दिया फरेब दोष नहिं कोई ।में भरम कूप में पड़ा रहा घबराई ।। सूखा रक्त्त अरू माँस सोच दिन राती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती(1) सुरत निरत हरकारे खबर पहुँचावें।तब शब्द की रेल चढ़ाय तुरत बुलवावें ।। मैं रहूँ गुरू के संग सोच सब त्यागी ।बिन वर्षा झड़ियाँ लगी जाई तहाँ लागी।। मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (2) सती चढ़ी सत शब्द निरख उजियाली ।ऊपर चढ़ कर लखा सूरज जहाँ लाली ।। चाँदनी चौक में जाय भँवरगढ़ लागी ।रवि लखा रौशनी द्वार अँधेरे त्यागी ।। चढ़ सतपुरूष दीदार किया बहु भाँती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (3) अलख अगम के पार लखा राधास्वामी ।अकथ अगम अनाम रूप वह दवामी ।। उनसे मिलकर फिर आज हुई मदमाती ।मेरे सतगुरू हैं परदेश लिखूँ कस पाती (4) *राधास्वामी* राधास्वामी सन्तभजनावली -11 सतगुरु हैं परदेश ।