कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई,,, तेरी चाहतों का असर यूं हुआ कि अब हर शहर मेरा घर हुआ,,, ना कोई ठोह ना कोई ठिकाना यह दिल बन गया काफिराना,,, खानाबदोश की तरह बितती हर रातें खामोशियों की सनसनाहट में करती खुद से बातें,,