पापा, चाचा, भैया हम सबका बचपन बीता जहाँ पर प्यारी प्यारी यादों का केंद्र" हमारा पुराना घर " बचपन में चढ़ के घर की छत पर आसमान में उड़ते जहाज को हाथ हिलाते थे छम छम बरसते बारिश के पानी में कागज की नांव चलाते थे होता था खजाना बाबा के थैले में वो ज़ब भी घर को आते थे खिला पिला के बाबा हमको, बैठा कर कंधे पर अपने दुनियां भर की सैर कराते थे स्कूल जाने के नाम पर मैं मुँह बनाता था बाकी बच्चों की तरह स्कूल मुझे भी कम ही भाता था रोज बना कर नया बहाना मैं घर को भाग आता था हुए परेशान मुझसे पापा.. फिर हुआ एडमिन दूर स्कूल में, तब कोइ बहाना काम नी आते थे क्योंकि रोज अपनी साइकल पर बैठा पापा मुझे स्कूल छोड़ कर आते थे वो सुकून कहाँ अब नींद में जो खुले आसमान के नीचे सोने में पाते थे कभी छेड़ते, कभी डांटते, कभी चाचा मुझे लाड लड़ाते थे जुगनुओं से चमकते तारों की छाँव में हम बतियाते बतियाते सो जाते थे सुबह बड़े से पतीले में माँ ओर चाची चाय बनाती एक साथ बैठा कर सबको चाय पिलाती अब जो हम बड़े हो गये, बाबा का कंधा, पापा की साइकल, कागज की नाव, सब पीछे रह गये सबके बन गये नए नए घर अकेला रहा गया "हमारा पुराना घर " #हमारा पुराना घर