आज शाम ज़िंदगी किस वक़्त क्या गुल खिलाती है, ये तो वक़्त के पन्ने जब सामने आते हैं तभी दृष्टिगत होता है। आज शाम बैठा था यूँ ही तो सोचा कोरोना ने सबकी ज़िंदगी ही बदल डाली। मज़दूर हो या कोई युवा या समाज का बेरोज़गार इंसान हर को रोज़गार के लिए न जाने कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है पर सत्ता के हुक्मरानों की परवाह चुनाव पर ही केंद्रित है। आज शाम से मैंने ये भी जाना कि हर शाम के बाद रात्रि प्रहर आता है और उसके बाद वो सुबह जब हमें नई ऊर्जा के साथ जीना शुरू करना चाहिए क्योंकि हर पल को आख़िरी पल मानकर जीना ही तो ज़िंदगी है। ©Jitendra VIJAYSHRI Pandey "JEET " #आजशाम #जीतकीनादानकलमसे #PoetInYou