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शीर्षक - मैं परछाई हूँ मैं परछाई हूँ अपनी माँ की,

शीर्षक - मैं परछाई हूँ

मैं परछाई हूँ अपनी माँ की,
दरोहर हूँ अपने घर की,

माँ की परछाई बन मज़ा बड़ा आता है,
कौन कैसे हैं तब समझ आता है,

जब लोग बोलते हैना कि मैं परछाई हूँ,
तब लगता है मुझे मैं भी कुछ हूं,

माँ के जैसे छवि होना भी कमाल की बात है,
मेरा नसीब ही बड़ा लाजवाब है,

उनकी सीख से अपनाउंगी हर बार मैं,
चाहें हों जाये कितनी भी दूर वह,

हज़ारों किताबों में माँ की उदारता लिखत है,
हमारे कर्मो पर इसका प्रमाण निर्दरित है,

हर किसी से कहूँगी बनो अपनी माँ के सामान तुम,
हर किसी से कहूँगी फिर कभी  मत डरना  तुम,

उम्मीद हैं मेरी इन पक्तियों ने आपके  हर्दय को छुया होगा,
उम्मीद है आपको मेरा कहना सही लगा होगा।

©Manavata Tripathi (Tejashvi) #mtt1507
#poetrygirl_mtt1507
#parchayi #motherlove 
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please
शीर्षक - मैं परछाई हूँ

मैं परछाई हूँ अपनी माँ की,
दरोहर हूँ अपने घर की,

माँ की परछाई बन मज़ा बड़ा आता है,
कौन कैसे हैं तब समझ आता है,

जब लोग बोलते हैना कि मैं परछाई हूँ,
तब लगता है मुझे मैं भी कुछ हूं,

माँ के जैसे छवि होना भी कमाल की बात है,
मेरा नसीब ही बड़ा लाजवाब है,

उनकी सीख से अपनाउंगी हर बार मैं,
चाहें हों जाये कितनी भी दूर वह,

हज़ारों किताबों में माँ की उदारता लिखत है,
हमारे कर्मो पर इसका प्रमाण निर्दरित है,

हर किसी से कहूँगी बनो अपनी माँ के सामान तुम,
हर किसी से कहूँगी फिर कभी  मत डरना  तुम,

उम्मीद हैं मेरी इन पक्तियों ने आपके  हर्दय को छुया होगा,
उम्मीद है आपको मेरा कहना सही लगा होगा।

©Manavata Tripathi (Tejashvi) #mtt1507
#poetrygirl_mtt1507
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