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आज महीना खत्म होने को था, ​सारे काम निपटाकर वो, ​ज

आज महीना खत्म होने को था,
​सारे काम निपटाकर वो,
​जेठ की दुपहरी मे,
​अपनी थकान और नींद को,
साड़ी के पल्लू मे पोंछकर,
​सबका हिसाब करने,
​साल का कैलेंडर लेकर बैठ गयी,
​अपनी पक्की सहेली आईने के पास,
​जो मौन थी,
​पर ​जो जानती थी,
उसके मन की सारी बात,
​एक ही घर मे रहते हुए,
​जिससे मिलने वो आयी थी,
महीने भर बाद,
​क्यों कि उससे मिलना,
​उसके रोज के कामों मे था,
​जो न आता बार-बार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में

क्योंकि आगे की पीढ़ियाँ माँगेंगी उस स्त्री से "रोने का हिसाब"

#रोने_का_हिसाब

आज महीना खत्म होने को था,
​सारे काम निपटाकर वो,
आज महीना खत्म होने को था,
​सारे काम निपटाकर वो,
​जेठ की दुपहरी मे,
​अपनी थकान और नींद को,
साड़ी के पल्लू मे पोंछकर,
​सबका हिसाब करने,
​साल का कैलेंडर लेकर बैठ गयी,
​अपनी पक्की सहेली आईने के पास,
​जो मौन थी,
​पर ​जो जानती थी,
उसके मन की सारी बात,
​एक ही घर मे रहते हुए,
​जिससे मिलने वो आयी थी,
महीने भर बाद,
​क्यों कि उससे मिलना,
​उसके रोज के कामों मे था,
​जो न आता बार-बार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में

क्योंकि आगे की पीढ़ियाँ माँगेंगी उस स्त्री से "रोने का हिसाब"

#रोने_का_हिसाब

आज महीना खत्म होने को था,
​सारे काम निपटाकर वो,
akalfaaz9449

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