क्या ज़ुल्म है हमपर की हर बात बतानी पड़ती है, जान लो मन के भेद क्यूँ हर बात जतानी पड़ती है اا शिक़वा नहीं रहो की रक़्स में दिनभर, मगर बाहों में आशिक़ की हर रात बितानी पड़ती है اا कह रहा है सिवा तेरे दिलदार नहीं मेरा कोई, ना मालूम मगर क्यूँ हमको ये बात गुमानी पड़ती है اا है 'इल्म-उल-यकीं में मेरे हर इक बात अगरचे , है बाज़ी-ए-इश्क़ 'अबीर' कुछ बात छुपानी पड़ती है اا रक़्स- नृत्य, गुमानी - शक की, इल्म-उल-यकीं - ज्ञान पर आधारित विश्वास #yqurdu #yqbhaijan #yqlove #yqquotes #yqlife #yqhindi #yqdada #yqgazal