गजल नफरत छोड़ दे अब प्यार मे चाहतों मे रहा कर फसादों मे कुछ नही रक्खा इबादतों मे रहा कर एक जिंदगी फानी उसमे भी दुनियाँ भर के गम बोझ लेकर क्या जीना दोस्त राहतों मे रहा कर धर्म को बदनाम न कर सियासत के झगड़ो मे तू खुदा नही कहता तुझसे के अदावतों मे रहा कर तुझे बांटने की फिराक मे हर वक़्त लगे हैं असुर आपस मे मिलझुलकर एक रियासतों मे रहा कर आते जाते लोगों से मेल मिलाप रखा कर भाई ये आदतें बहुत अच्छी हैं इन आदतों मे रहा कर मारुफ आलम अदावत-दुशमनी , रियासत-राज्य इबादतों मे रहा कर/गजल