जैसे फैलती है चांदनी चांद की जैसे फैलती है छटा शाम की जैसे फैलती है रोशनी सूर्य की यूहीं फैलती रहे कीर्ति तेरी जैसे फैलती है हवा फ़िजाओ मे जैसे फैलती है स्वर नाद् सभी दिशाओं मे जैसे फैलता है रंग आसमान में यूहीं फैलती रहे कीर्ति तेरी जैसे फैलता है क्रोध रुद्र का जैसे फैलता है जल समुद्र का जैसे फैलती है कीर्ति राम की जैसे फैलती है बंसी की धुन श्याम की यूहीं फैलती रहे कीर्ति तेरी— % & यूहीं फैलती रहे कीर्ति तेरी