ये रस्मो-रिवाज के ज़ंजीरो में जकड़ता है, ये मुआशरा सड़ चूका है इसमें अब दम घुटता है। ये जो रंडी कहते फिरते हो तुम जिसे, ये दोगली समाज का ही तोह आइना है वैसे। तवायफों की महफ़िलें को आबाद करने वाले, मजबूर कर उनको बाज़ार में बेचने वाले, यही बनते है खूब शरीफ दोगले समाज में रहने वाले। ये कोई मुआशरा है जो बंट चूका हो ज़ात पात धर्म की लकीरों से, ख़तम करो वो रस्मो-रिवाज़ जिसमे जकड़ गयी नस्ल-दर-नस्ल ज़ंजीरो से। बेटियों को ये बोझ समझने वाले ये है आत्मा से खोखले, माँ के शिकन में ही मार दे बेटियों को और भाषण करे औरतो की हक़ की ये है समाज के दोगले। ऐ नौजवानों तुम तोह सुधारो इस समाज को, नहीं तोह भारी कीमत चुकानी पड़ेगी अगले नस्ल को..... "दोगली समाज" Ye sachhai hai sach chupta nahi, Na jaane kyu ye sach kisi ko pachta nahi... शिकन- womb, कोख (Some words might offend many so I am sorry for using those words) #nojoto #nojotohindi #nojotoshayari