देश का बजट अब वही खाता हो गया अरे वही खाता जिसमें पेश तो सीता रमण ने किया जिनको अर्थशास्त्र का ककहरा तक नही आता भाई बजट नही ये है वही खाता अब देश रूपिया जाने कौन है खाता बही नही वही खाता बजट विदेशी है अब संविधान भी बदल दो