Heart मेरे मन कि उल्झने मुझे से पुछना चाहती है मै कहा हु? जो मिला वह चाहिए नहीं क्या चाहिए यह पता नहीं जो चाहा वह किया नहीं जो किया वह चाहा नहीं काश औरा आस में उलझा रहा जीवन सब कर रहे हैं इंतजार पर इंतजार किसका यह पता नहीं हर कोई असमंजस में जी रहा है सुलझा हुआ सा समझते तो है मुझे जबकि उलझा हुआ सा कोई मुझमे है भीड़ बनना चाहता नहीं कोई फिर भी भीड़ में ही सुकून पा रहा है कोई नौका में है कोई भंवर में है कोई सरिता में है कोई लहर में है सब फंसे हैं मझधार में किनारा किसी को मिलता नहीं मैं पाप में हूं या पुण्य में हूंँ मैं अनंत में हूं या शून्य में हूंँ कोई मुझे यह बतला दे मैं किस धरातल पर हूंँ अंतस है तम से बोझिल जीवन में है आपा धापी एकाकार हैं शून्य से तब मानो सृष्टि ने एक राह सुझाई है कविता अंकुर ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) मेरे मन कि उल्झने मुझे से पुछना चाहती है मै कहा हु? जो मिला वह चाहिए नहीं क्या चाहिए यह पता नहीं जो चाहा वह किया नहीं जो किया वह चाहा नहीं काश औरा आस में