ऊंचा उड़ने की ख्वाहिशों में, कहां मैं बदनसीब आ गया, मैं वो पतंग हूं जो, हवाओं के बहकावों मे बादलों के बोहोत करीब आ गया।। ज़रुर याद कर मुझे, मेरे लौटने को सदाएं देती होगी, दे पहली उड़ान मुझे, मेज़ के नीचे अब खुद तन्हा अकेले रहती होगी। जहां बिछड़े थे, छत पर उसी फिर मिलने की दुहाई देती होगी, आसमानों में आके अहसास हुआ, बची आस की डोर से लिपटी वो चरख़ी मेरे इंतजार में बैठी होगी।। भूल गया कि कागज़ का हूं मैं और बादलों के बोहोत करीब आ गया, खत्म होने को हूं टकरा बारिश की बूंदों से, ये कहां मैं बदनसीब आ गया।। #shaayavita #badnaseeb #badalta_waqt #nojoto