सोच सोच कर सोच के लिए निकले वहाँ मिल गया बूढ़ा आदमी उनसे पूछा ये मायूसी केसी कौन सी बात तुमको खल रही हमने कहा सावन हो पतझड़ हो या फ़िर हो बसंत बहार सोचालय का कोई ठिकाना नहीं हैं बाहर जाना है दुश्वार कितनी गंदगी भरी पड़ी हैं यहाँ पर सांस लेना हैं कितना मुहाल काश मेरा एक बड़ा घर होता जिसमें होता सोचालय बेमिसाल। ©Ramjaane Solanki #सोचालय