।। गिरवी खुशियाँ ।। अधखुली खिड़कियों से झाँकते रहे चंद ख्वाब है कि,अब तक जागते रहे शोर के बस में अब कुछ ना रहा खामोशियों से ही लोग हिसाब मांगते रहे गिरवी पड़ी है खुशियों के लम्हे कहीं लोग तो पैसों से तिजोरीयां भरते रहे किस तरह का जीना है यह और किस तरह लोग ऐसे जीते रहे नींद अब है कि आती नहीं पल पल में करवटें बदलते रहे सिलसिला मुलाकातों का चल निकला शायद रात भर यादों के अलाव जलते रहे मोड़ है की राह में आते रहे सफर को थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते रहे मंजिल सामने है खड़ी इंतजार में और हम रास्ते का लुफ्त उठाते रहे @विकास ©Vikas sharma #Sunrise गिरवी खुशियां