सब अदाओं से महफूज़..सनम तुम्हारा ये हुनर अच्छा है! मेरे कदम कुछ कांप रहे थे, आस पास लोग भी चुप चाप खड़े थे । सबकी आँखों में एक ही सवाल था.. "वह आवाज़ आखिर है किसकी?" रहा न गया तो बढ़ चला उस मंज़िल की ओर, जिसका न पता है न ठिकाना.. न कोई साथी है, न लौट आने का बहाना..