यादों के झरोखे से देखती हूँ, जब मैं वो मंज़र 'नज़र' आता है वक़्त का यह सितम, अपनों के हाथों में खंजर 'नज़र' आता है उदास सा चेहरा लबों की तबस्सुम का क़ातिल 'नज़र' आता है दर्द ही दर्द है चारों और, हर ज़ख़्म यूँ अब हरा 'नज़र' आता है पुराने चिथङो में लिपटा है 'प्रेम' अब बुढ़ा सा 'नज़र' आता है ख़्वाहिश मुकम्मल नहीं,हर ख़्वाब अब कब्र में 'नज़र' आता है वीरानी का मंज़र है, दूर तलक कोई ना अपना 'नज़र' आता है यादें पुरानी, ज़ख्म पुराने, कहाँ अब कुछ नया 'नज़र' आता है हसीन भी है कुछ,पर माप यहाँ तो बस दर्द का 'नज़र' आता है वक़्त का यह सितम, 'अपनों' के हाथों में खंजर 'नज़र' आता है ♥️ Challenge-799 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।