शहनाइयों की गूँज गर अरमानों के टूटने की, खनक से ही है तो, ये बेदी, ये सेहरा, ये मण्डप गर दिलों की ख़्वाहिशों के, कत्लगाह से ही है तो, ये जमाना तेरे रिवाज के खिलाफ हो रही हूँ मैं । ये हस्ती, ये इज्जत, ये शोहरत गर दिल-ए-नासूर के , जख्म से ही है तो, ऐसी शोहरत तुझे ख़ाक कह रही हूँ मैं । दिल अपना तो अपनी हाल पर है मगर कई दिलों का जमाने के रिवाज में दफ़न, अनसुनी है जो आवाज कह रही हूं मैं।। बृजेन्द्र 'बावरा, #NojotoQuote #दहेज #प्रथा #बाल #विवाह #बेबस #लड़की www.facebook.com/bawraspoetry/