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मन से हो बली, तन हो कैसा भी, कर्म से हो धनी, अर्जन

मन से हो बली, तन हो कैसा भी,
कर्म से हो धनी, अर्जन हो कैसा भी,
दिल से हो प्रेमी, कथन हो कैसा भी,
लगन से हो उद्यमी, ज्ञान हो कैसा भी;
मानव वही असली, जो दिखता हो जैसा भी,
अहम से बढ़कर हो फ़िक्र जिसे मानवता की;
जिसे हो न मद किसी जाति, भेष व कुल की,
जो जग की शांति को, चढ़ा सकता बलि खुद की;
धरती हो जिसकी मां, मिट्टी का जो आभारी है,
जीवन भर भला करने की जिसने की तैयारी है
सृष्टि की सुरक्षा की जिसने ली जिम्मेदारी है,
असल में वही मानव कहलाने का अधिकारी है।

हाहाकार मचा है कई बार सृष्टि के आंगन में,
हर बार संवारा है इसे मानव के उचित जतन ने।
©अनुपम मिश्र #Love #sonnet #HUmanity  #humanity #manav
मन से हो बली, तन हो कैसा भी,
कर्म से हो धनी, अर्जन हो कैसा भी,
दिल से हो प्रेमी, कथन हो कैसा भी,
लगन से हो उद्यमी, ज्ञान हो कैसा भी;
मानव वही असली, जो दिखता हो जैसा भी,
अहम से बढ़कर हो फ़िक्र जिसे मानवता की;
जिसे हो न मद किसी जाति, भेष व कुल की,
जो जग की शांति को, चढ़ा सकता बलि खुद की;
धरती हो जिसकी मां, मिट्टी का जो आभारी है,
जीवन भर भला करने की जिसने की तैयारी है
सृष्टि की सुरक्षा की जिसने ली जिम्मेदारी है,
असल में वही मानव कहलाने का अधिकारी है।

हाहाकार मचा है कई बार सृष्टि के आंगन में,
हर बार संवारा है इसे मानव के उचित जतन ने।
©अनुपम मिश्र #Love #sonnet #HUmanity  #humanity #manav