मन मे उठता ज्वार हमेशा, देश मेरा किस ओर चला हैवानो ने हदे पार की, केंडल से विरोध हुआ रोज कहि इन घटनाओ को अंजाम दे दिये जाते है सुबह बेठ कर अखबारों में, पढ़ कर हम फिर भूल जाते है दरिंदगी की अंतिम सिमा, लांघ रहे अपराधी है हम केवल मूक दर्शक बनकर, सहते जैसे परिपाटी है मेरे मन मे हर पल चलता , न जाने कल किसकी बारी है हैवानो के दुस्साहस की बलि चढ़ रही क्यो नारी है ? नैतिकता भी मेरे देश की किन मुद्दों से पनप रही, धर्म पूछते पीड़िता के ना पूछे क्यो बिलख रही ट्विंकल हो या हो आशिफा, सब की यही कहानी है खुद के खून को खून कहो तो गैरो का क्या पानी है में पूछू उन इंसानो से क्या मानवता यही सिखाति है अपराधी की करतूते भी क्यो मजहब से जोड़ी जाती है गूंज रही थी जो कल किलकारी , क्यो वह अब चीत्कार बनी सिहर उठी यह धरती माँ भी जिसने यह चीख पुकार सुनी एक निर्भया भूले भी न दूजी घटना फिर घट जाती है ह्रदय दुखी कर देती दिल मे मायूसी भर जाती है राख बनी है आज प्रियंका न जाने कल क्या होगा दहशत में जी रही बेटियाँ इसका अंत न जाने कब होगा ? इन वीभत्स अपराधों का ऐसे अंत नही होगा दण्ड सहिंता के पन्नो पर जब तक फाँसी का प्रबंध नही होगा सुनील धबाई मन मे उठता ज्वार हमेशा, देश मेरा किस ओर चला हैवानो ने हदे पार की, केंडल से विरोध हुआ रोज कहि इन घटनाओ को अंजाम दे दिये जाते है सुबह बेठ कर अखबारों में,