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स्वर्णिम तितलियों सी ख़्वाहिशें,उड़ने को पँख पसार र

 स्वर्णिम तितलियों सी ख़्वाहिशें,उड़ने को पँख पसार रही हैं..!
क़ैद करने की चाहत नहीं,आज़ादी यूँ ही निहार रही हैं..!

मैं उत्कृष्ट न झेलूँ कष्ट,पृष्ठ इश्क़ के संवार रही हैं..!
निग़ाहों में बसी हैं ऐसे,मोहब्बत से पुकार रही हैं..!

आईने में तकती हैं ख़ुद को,ख़ुदा के समान कहीं यार रही है..!
बहती रहती यूँ कहती मन से,जटा में शिव के जैसे पधार रही है..!

गँगा के निर्मल जल सा दिल में,एक कोशिश सुकून उतार रही है..!
नभ के नज़ारे लगते प्यारे,चाँद सितारों से जो दरकार रही है..!

मोहब्बत के नगर में हर इक डगर से,तेरी चाहतों की जो भरमार रही है..!
ज़िन्दगी की तलाश यूँ सूरज का प्रकाश,तेरी ख़ूबियों मेरी ख़ामियों की सरकार रही है..!

©SHIVA KANT
  #Hum #EkKoshish