मेरी कविता शब्दों से अलंकृत, भावों से सुसंस्कृत कभी नवोढ़ा, कभी विहग का जोड़ा कभी पड़ाव, कभी धूप, कभी छाँव कभी गिरी से गिरता रमणीक झरना कभी माँ की गोद में हँसता ललना कभी सागर हो शांत, कभी चित्त हो अशांत कभी तपती दुपहरी, कभी मानो रात हो गहरी कभी किसी पथिक का चलना, तो कभी ठहरना कभी मद्धिम चाँदनी में बन हरसिंगार महकना कभी चंचल नदी का वेग, कभी सलिल का आवेग कभी प्रियतम-सा प्यार, कभी विरहिणी का इंतजार कभी भारती की वीणा के तारों से झंकृत मेरी कविता शब्दों से अलंकृत, भावों से सुसंस्कृत || #मेरी #कविता शब्दों से #अलंकृत, भावों से #सुसंस्कृत "स्मृति "✍️