दिवाली आयी है मैं भी दिवाली मनाऊंगा। मेरे टुटे झोपड़ को लिपुंगा-पोतूंगा, मिट्टी के दीपक से झोपड़ को सजाऊंगा। दिवाली आयी है मैं भी दिवाली मनाऊंगा।। दो साल पहले की नयी ड्रेस निकालूँगा, नयी ड्रेस पहनकर मैं, घुमू, इतराऊंगा। दिवाली आयी है मैं भी दिवाली मनाऊंगा।। चाहे रोज भले मैं रुखी-सूखी खाता था, पर मैं कही से चावल लाकर आज बनाऊंगा। दिवाली आयी है मैं भी दिवाली मनाऊंगा।। ना है तेल,घी खाने को कुछ भी मेरे घर में, मांगे हुये तेल से घर में दीप जलाऊंगा। दिवाली आयी है मैं भी दीवाली मनाऊंगा।। ना है पूजा का सामान ना है कोई फोटो तेरी, बस मिट्टी की मूरत के मैं भोग लगाऊंगा। दिवाली आयी है मैं भी दिवाली मनाऊंगा।। बस कुछ दिन विष्णुप्रिया मेरी कुटिया आ जाना। मैं सच्चे मन से माँ, तेरा ध्यान लगाऊंगा। दिवाली आयी हैं मैं भी दिवाली मनाऊंगा।। गरीब की दिवाली ये कविता आप जरुर पढ़े