पल्लव की डायरी रात के उजाले,रस्म अदायगी अदा करते है खरीदी हुयी खुशी प्रदान करते है चुकाते है पैसे,तब रोशन घर बार होते है इतराते है हम सब इन विकासों पर मगर कुदरत की व्यवस्था को चुनौती देते है रात को दूसरी दुनियाँ बना कर कितनी अव्यवस्था को जन्म देते है चाँदनी रातो में तन मन को आराम नही देते है घट रही है आयु,रोगों से शरीर खोखला है फिर भी बेहतर कल बनाने में आदमी जुटा है शाश्वत रोशनी का मजा उठाये बिना रातो को हराम कर रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Hum रातो की नींद हराम करता है