//कागज की एक कश्ती हूँ// ************************** तूफानों से जो लड़ने चली, वो काग़ज़ की एक कश्ती हूँ मैं। पल पल खुद में घुटती रहती, आँसू बनकर बरसती हूँ मैं। दिल में नहीं हरसत कोई, पर फ़िकर सबकी करती हूँ मैं। कोई नहीं मेरी सुध लेता, अपनेपन के लिए तरसती हूँ मैं। गिरकर चलती चलकर गिरती, हर पल यूँ ही सँभलती हूँ मैं। हँसकर रोती, रोकर हँसती, जाने अब कितना बदलती हूँ मैं। खुद को ऐसा बना लिया, कि अपनी ही बातों से डरती हूँ मैं। मिलता नहीं हमदम कोई, जाने किसके लिए मचलती हूँ मैं। कितना भी खुदको दूर रखूँ मैं, अतीत से अक्सर डरती हूँ मैं। करके याद वो बीती बातें, मोम सी पल पल पिघलती हूँ मैं। //कागज की एक कश्ती हूँ// ***************** तूफानों से जो लड़ने चली, वो काग़ज़ की एक कश्ती हूँ मैं। पल पल खुद में घुटती रहती, आँसू बनकर बरसती हूँ मैं। दिल में नहीं हरसत कोई, पर फ़िकर सबकी करती हूँ मैं। कोई नहीं मेरी सुध लेता, अपनेपन के लिए तरसती हूँ मैं।