छोड़ चला मै उन हसीन वादियों को जहा खुशनुमा मौसम और दुखी लोग थे पीड़ा तर_बतर बढ़ती जा रही थी इसके इलाज के दिल्ली देहरादून आ रहे थे खाली हो गए फिर सब आंगन चौखटो पे लगे अब ताले बंदर सुअर भी अब आए घर के आँगन मै लगा आँगन था अब जंगल जिस चूल्हे पर कभी रोटी सीकती थी उस चूल्हे पर आज घास उगती है जो पीड़ा सह कर शहर आए थे आज भी वो धीमक की तरह लगती है ये तन क्यू ना शहर मै हो लेकिन मन आज भी अपने उत्तराखंड मै है #Gangadhar