वो मिलते ही,जुदाई दे रहा है मिरी इज़्ज़त गिराई दे रहा है वफ़ा पे हक है उसकी दूसरे का मुझे बस 'बेवफ़ाई' दे रहा है ख़ामोशी है लबों पे मेरे लेकिन मुझे सब कुछ दिखाई दे रहा है उसे मालूम है, ग़लती है उसकी मग़र फिर भी सफाई दे रहा है असर कुछ हो रहा ना टूटे दिल पे 'डॉक्टर' तो 'दवाई' दे रहा है तुम्हारी 'हार' भी है 'जीत' जैसी तुम्हें दुश्मन बधाई दे रहा है उसे तालीम है ना तरबियत है ज़माने की दुहाई दे रहा है वसीयत लिखने की खातिर वो बेटा पिता को रोशनाई दे रहा है --प्रशान्त मिश्रा "ग़ज़ल: सब कुछ दिखाई दे रहा है