""..प्यार करता हूं, जताना नहीं चाहता.. खामखा ही नजरों में, आना नहीं चाहता.. बात करने से बात बढ़ती है.. बस इसी बात से, बात बढ़ाना नहीं चाहता.. तरह तरह के लोग हैं, तरह तरह की बातें करेंगे.. मैं मगरूर हुं.. कोई, ताना नहीं चाहता.. जली- भुनी रहती हो पहले ही दीवानों से तुम.. इसी कतार में, मैं और कोई दीवाना नहीं चाहता.. इसी कशमकश में जां मेरी पड़ी रहती है, मैं बताना चाहता हूं मगर बताना नहीं चाहता..!!"" ""..प्यार करता हूं, जताना नहीं चाहता.. खामखा ही नजरों में, आना नहीं चाहता.. बात करने से बात बढ़ती है.. बस इसी बात से, बात बढ़ाना नहीं चाहता.. तरह तरह के लोग हैं, तरह तरह की बातें करेंगे.. मैं मगरूर हुं.. कोई, ताना नहीं चाहता..