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मैं  ख़ुशियों   का  पता   कहीं   ढूंढ  रहा  था, मै

मैं  ख़ुशियों   का  पता   कहीं   ढूंढ  रहा  था, 
मैं   अपना   ही   पता  कहीं   ढूंढ   रहा  था। 

तुमसे   मिला  तो   पता  चला   तब  मुझको, 
मैं  इतने  दिनों  से  क्या  नहीं  ढूंढ   रहा  था। 

आँखें  जब  जब   भी  कभी   भर  आईं  मेरी, 
मैं  तुम्हारा   ही   कंधा   कहीं   ढूंढ  रहा  था। 

तेरी  बाहों  में  ग़ैर  को  जब  देखा  तो  जाना, 
मैं  सही  शहर  ही  में  पता नहीं  ढूंढ  रहा था। 

मेरी आँखों में भी  उसे जहाँ  भर की  रेत मिली, 
जो  बूँद  का  आख़िरी  कतरा  कहीं ढूंढ रहा था।

©Prashant Shakun "कातिब"
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