रस्म - ए- रसूल से यूं डाह ना कर, रकीब की बाहों में सिमट, राम की चाह ना कर, खुदा की रहमत थी , जो बख्श दिया , उसपर सवाल कैसा? चाह तेरी थी तू पाया, फिर बवाल कैसा? ©Pt Savya kabir रस्म - ए- रसूल से यूं डाह ना कर, रकीब की बाहों में सिमट, राम की चाह ना कर, खुदा की रहमत थी , जो बख्श दिया , उसपर सवाल कैसा? चाह तेरी थी तू पाया, फिर बवाल कैसा?