सच सच बताना यार miss करते हो कि नही । वो बाबा उम्मद सिंह जी की मेड़ी, वो रतिराम जी की चाय की रेड़ी, वो BMB , वो जयपुर होटल औऱ शायर अंकल का ठेला, जहाँ हर शाम लगता था हम लोगो का मेला । आज सब अकेले अकेले फिरते हो कि नही, सच सच बताना यार miss करते हो कि नही । भूल गए वो दिन , जब टोलियाँ बनाकर कॉलेज जाया करते थे । एक दूसरे को देख , खूब हँसते मुस्कराया करते थे । वो क्लास रूम में जाना, खिड़की के शीशे से खुद को निहारना, बैग टेबल पर रखकर ग्राउंड में जाना, पूरे दिन की प्लानिंग वही से बनाना, वो असेम्बली हॉल में जाना, माँ शारदा को दीप जलाना, वो माँ की वंदना , वो सुविचार और प्यार भरी गजलें, जिन्हें सुनते सुनाते हुए ग़र ख़फ़ा तो फिर गले मिले । आ जाए इन दिनों कॉलेज से कोई बुलावा, तो वापस लौटना चाहते हो कि नही । सच सच बताना यार miss करते हो कि नही । याद है न वो सँकरी गलियां, वो मसरूफ़ चौराहे, और उनको जोड़ती वो उजड़ पगडंडियां, वो गुलाबी ठंड , वो तपती तेज दुपहरी और सावन की बारिशों में भी इंतजार की घड़ियां, और उन राहों पर लिखी गयी, वो सारी प्रेम कहानियां, वहां हर मोड़ पर बिखरी हुई, वो मोहबतों की निशानियां, आज फिर उन्ही गलियों से, हो आने की ख्वाहिश करते हो कि नही । सच सच बताना यार miss करते हो कि नही । ©Shiv~ #collegedays