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दूर ज़माने से हो चले, जले ज़िन्दगी भर सुबह और शाम..!

दूर ज़माने से हो चले,
जले ज़िन्दगी भर सुबह और शाम..!

मरते रहे अपनों की ख़ातिर,
और होते रहे यूँ ही बदनाम..!

जिया न ख़ुद के लिए कभी,
इल्ज़ाम पर देते रहे सभी..!

धिक्कारी मक्कारी दुनिया से,
अलविदा करते हम ग़ुमनाम..!

दिखावे में जीना न आया,
इसलिए भी तन्हा ख़ुद को पाया..!

आया गया के खेल में,
जीवन हुआ तमाम..!

झूठे रिश्ते नाते सभी,
ढोंग का दरबार दिखा..!

हमने ख़ुद को ज़माने में,
जोकर के सिवा क्या लिखा..!

चीख रहा है अंतर्मन,
हो जा रूह से तू जुदा..!

ख़ुदा के रूप में मिलेंगे तुझको,
मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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