अपनी बिसात से बढ़कर जनून है पाला मैंने यूँ तुमसे बिछड़ खुद को है सम्भाला मैंने ज़ख्म सूखे नहीं यूँ तो अर्सा बीत गया लहू दिल का अश्कों में है ढाला मैंने इक इक ख्वाब आँखों में जो तुम छोड़ गये रात भर जागकर इनसे है निकाला मैंने मेरी आहों से तेरा नाम भी बदनाम न हो हर इक तकरीब में है जाम उछाला मैंने कभी जो राह में मिलो न आशना होना सिर से पाँव तक खुद को है बदल डाला मैंने अब किसी तौर न मिलेगी तुझे तसकीन समर तेरे हिज्र को औलाद सा है पाला मैंने