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तू स्त्री है एक शक्ति है तुझसे ही जलती संस्कारो

तू
स्त्री है 
एक शक्ति है 
तुझसे ही जलती 
संस्कारों की ज्योति है
त्याग भी तू बलिदान भी तू
हर जंग तू खुद डटकर लड़ती है
चाहे कैसी भी हों, जीवन परिस्थितियांँ
घबराती नहीं, हिम्मत से मुकाबला करती है
रीति-रिवाजों का बंधन तुझपे मिले नित नए ताने
फिर भी पूरे मन से, अपने सभी किरदार, तू निभाती है
दिन-रात जीवन यह तेरा,अस्त-व्यस्त, फिर भी है तू सशक्त
अपने ख़्वाब, अपना व़जूद भुलाकर औरों की खातिर तू जीती है 
कितना भी अच्छा काम करो,फिर भी लोग निकालते हैं तुझमें कमियांँ
पर तू भी किसी से कम नहीं, हर चुनौती तू, निडरता से स्वीकार कर लेती है 
कोमल है तू पर कमज़ोर नहीं, बंधन में भी रहकर भी तूने छुआ है आसमान को
देख रहा है, यह समाज भी, कैसे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, तू चलती है
हर क्षेत्र में है, योगदान तेरा भरपूर, किसी भी मायने में तू पुरुषों से है तनिक भी कम नहीं
जब जब भी किसी तूफ़ान ने तुझे रोकने की कोशिश की है, तू फौलाद बन उभर कर आती है।

©Mili Saha
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