(कङवा सच) ये चेहरे जो गरीबी की मजबूरी में हंसते हैं, दो वक़्त की रोटी के लिए भी तरसते हैं,, हाथ तो है कमाने को मगर सही रोजगार नहीं, बेरोजगारी के जहरीले सांप आठों पहर डसते हैं,, आकाश छूती मूर्तियों को देश की उन्नति बताने वाले, बेवकूफी के फूलों से सजाये शियासती गुलदसते हैं,, #कङवा_सच ये चेहरे जो गरीबी की मजबूरी में हंसते हैं, दो वक़्त की रोटी के लिए भी तरसते हैं,, हाथ तो है कमाने को मगर सही रोजगार नहीं, बेरोजगारी के जहरीले सांप आठों पहर डसते हैं,,