ईश्वर की अद्भुत रचना है नारी, नारी के होते हैं रूप अनेक, सबको ही बखूबी निभाती है। मैं भी एक नारी हूं, एक कलाकार मुझमें भी है, मैं भी हर किरदार बखूबी निभाना जानती हूं। जीवन की सुंदर बगिया के घर-आंगन को, मैं ही हरदम प्यार और खुशियों से महकाती रहती हूं बेटी बनकर बेटी का फर्ज, बहन बनकर बहन का फर्ज, मां बनकर ममता भी मैं ही लुटाती हूं। गमों को छुपा दिलों में, हर कष्ट सहकर, हर आंसू पीकर, सबके सामने मुस्कुराती ही रहती हूं। बड़ों का मान- सम्मान सदैव बरकरार रखती हूं, पत्नी बनकर पति के लिए सेज भी सजाती हूं। सबकी सेवा करने वाली परिचारिका और जख्म पर मरहम लगाकर वैद्य भी मैं बन जाती हूं। नए- नए व्यंजन बनाकर कभी खानसामा और कभी कपड़े धोने वाली धोबिन बन जाती हूं। कभी सबको हंसाने के लिए जोकर, कभी सबकी नौकर, तो कभी मार्गदर्शक बन जाती हूं। प्रबंधन करके घर का प्रबंधक कहलाती हूं, संघर्षों और कठिनाइयों से भी लड़ना जानती हूं। मेरी दुनियां कलाकारी से भरी है, कभी किसी की हमराज तो, किसी की महबूबा बन जाती हूं। जीवन में हार मानती नहीं कभी, हर कलाकार को जीकर अपने जीवन में, जीवंत कर जाती हूं। -"Ek Soch" #एक_कलाकार_मुझमें_भी_है_team_alfaz #new_challenge *Theme- एक कलाकार मुझमें भी है* Any writer can write anything but *remember the rule*