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"अहम् ब्रह्मास्मि और गुस्सा" हाथी को चींटी पर्वत

"अहम् ब्रह्मास्मि और गुस्सा"

हाथी को चींटी
पर्वत को तिनका
स्वयं को बाप
शेष को खाक
सृष्टि को मुट्ठी में
समझने का अहम भाव ही
अहम् ब्रह्मास्मि है!

अहम् ब्रह्मास्मि में
नही होती
पैरों तले जमीन
कोई आधार
आदमी होता है 
स्वयं में सर्वश्रेष्ठ
निरंकुश और निराधार
ठीक उसी तरह 
जैसे गुस्से में!

©Narendra Sonkar 'अहम् ब्रह्मास्मि'
"अहम् ब्रह्मास्मि और गुस्सा"

हाथी को चींटी
पर्वत को तिनका
स्वयं को बाप
शेष को खाक
सृष्टि को मुट्ठी में
समझने का अहम भाव ही
अहम् ब्रह्मास्मि है!

अहम् ब्रह्मास्मि में
नही होती
पैरों तले जमीन
कोई आधार
आदमी होता है 
स्वयं में सर्वश्रेष्ठ
निरंकुश और निराधार
ठीक उसी तरह 
जैसे गुस्से में!

©Narendra Sonkar 'अहम् ब्रह्मास्मि'