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ऐगे चैत यू बंसती बहार लीक फूल मां फूलार लीक फ्योली

ऐगे चैत यू बंसती बहार लीक
फूल मां फूलार लीक
फ्योलीं बुरांश खिलिगे बणो मां
बच्चा-बच्चा खुश म्यार पहाड़ मां
डेली-डेली फूल पडी गे
आज फूलदेई कु त्योहार एगे


 अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है।
फूलों में नई कोंपले आ गई है ,
वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है।
देहरी पर फूल पड़ चुके हैं 
आज फूलदेई का त्योहार है।

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फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं पूरे माह मनाया जाता है, तो कहीं 10 या 15 दिन।हिंदू नव वर्ष के अनुसार चैत्र माह से नया वर्ष प्रारंभ होता है, इस नए वर्ष को मनाने के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। बच्चे देहरी पर फूल डालते हुए विभिन्न प्रकार के लोक गीतों को गाते हैं और शांति व खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। भेंटस्वरूप लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ इत्यादि चढ़ाते हैं । घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है।फूलों की इस देवी को बच्चे ही पूजते हैं। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है।
ऐगे चैत यू बंसती बहार लीक
फूल मां फूलार लीक
फ्योलीं बुरांश खिलिगे बणो मां
बच्चा-बच्चा खुश म्यार पहाड़ मां
डेली-डेली फूल पडी गे
आज फूलदेई कु त्योहार एगे


 अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है।
फूलों में नई कोंपले आ गई है ,
वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है।
देहरी पर फूल पड़ चुके हैं 
आज फूलदेई का त्योहार है।

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फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं पूरे माह मनाया जाता है, तो कहीं 10 या 15 दिन।हिंदू नव वर्ष के अनुसार चैत्र माह से नया वर्ष प्रारंभ होता है, इस नए वर्ष को मनाने के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। बच्चे देहरी पर फूल डालते हुए विभिन्न प्रकार के लोक गीतों को गाते हैं और शांति व खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। भेंटस्वरूप लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ इत्यादि चढ़ाते हैं । घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है।फूलों की इस देवी को बच्चे ही पूजते हैं। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है।