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अजीब शायरी है यार तू, अल्फाजों के धागों में ही नही

 अजीब शायरी है यार तू,
अल्फाजों के धागों में ही नहीं बंधती,
मकान ए दिल में तो रहती हैं,
बस पन्नों पर नहीं उतरती,
अजीब शायरी है यार तू।
दिन में ठहराती हैं, रातों भगाती है,
सुकून के चंद लम्हे नहीं रखती,
आंखों के सामने वो लिबास ओ लिबास उतार देती है, फिर भी नियत से फिसलाने की आदत नहीं रखती, अजीब शायरी है यार तू,
 अजीब शायरी है यार तू,
अल्फाजों के धागों में ही नहीं बंधती,
मकान ए दिल में तो रहती हैं,
बस पन्नों पर नहीं उतरती,
अजीब शायरी है यार तू।
दिन में ठहराती हैं, रातों भगाती है,
सुकून के चंद लम्हे नहीं रखती,
आंखों के सामने वो लिबास ओ लिबास उतार देती है, फिर भी नियत से फिसलाने की आदत नहीं रखती, अजीब शायरी है यार तू,
vanshbatar0928

Vansh Batar

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