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विध्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद

विध्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभुषिताय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥
भावार्थ- वि्नेश्वर, वर देने वाले, देवताओं को प्रिय,
लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत का हित करने
वाले, गज के समान मुख वाले और वेद तथा यज्ञ से
सुशोभित पार्वती पुत्र को नमस्कार है; हे गणनाथ!
आपको नमस्कार है।

©KhaultiSyahi
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