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बस,यूँ ही चलते-चलते....४ --सुनीता डी प्रसाद💐

बस,यूँ ही चलते-चलते....४

    --सुनीता डी प्रसाद💐 #yqdidi  #yqtales

#बस,यूँ ही चलते-चलते..४

रविवार का दिन। बीती रात,बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट के बीच बारिश की झड़ी लगी रही..। सुबह भी यही मंजर था..। मेरा कतई मन नहीं था कि चाय बनाने के लिए भी उठूँ..। तुम बगल में मस्त सो रहे थे, आड़े-तिरछे..। मन हुआ ,जगाकर कहूँ कि चाय बना लाओ..। फिर पता नहीं क्या सोचते हुए किचन की ओर बढ़ गई..। लौटी तो ट्रे में दो कप चाय थी..। पर तुम बिस्तर पर नहीं थे..। थीं तो , बस कुछ सिलवटें..। ट्रे बैड पर रखकर, मैं पैर मोड़कर उसपर ठोड़ी टिका कर बैठ गई। दो आँसू , मेरे गाल पर लुढ़क आए। आज तुम्हें गए ,पूरा एक महीना हो चुका था..। मुझे बादल-बिजली के शोर से बहुत डर लगता है..। पर पता नहीं कैसे, कल मैंने एक ही करवट में पूरी रात निकाल दी थी..। हाँ, मैं अकेली कहाँ थी..तुम थे न, पूरी रात मेरे साथ..। चाय की ट्रे,साइड टेबल पर रखकर..मैं सिलवट पड़ी चादर पर ,आँखें मूँदकर लेट गई। उस समय ज़हन में,बस यही गीत चल रहा था.. *पल भर ठहर जाओ,दिल ये सँभल जाए, कैसे तुम्हें रोका करूँ.... अगर तुम साथ होओओओ..।* 
--सुनीता डी प्रसाद💐
बस,यूँ ही चलते-चलते....४

    --सुनीता डी प्रसाद💐 #yqdidi  #yqtales

#बस,यूँ ही चलते-चलते..४

रविवार का दिन। बीती रात,बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट के बीच बारिश की झड़ी लगी रही..। सुबह भी यही मंजर था..। मेरा कतई मन नहीं था कि चाय बनाने के लिए भी उठूँ..। तुम बगल में मस्त सो रहे थे, आड़े-तिरछे..। मन हुआ ,जगाकर कहूँ कि चाय बना लाओ..। फिर पता नहीं क्या सोचते हुए किचन की ओर बढ़ गई..। लौटी तो ट्रे में दो कप चाय थी..। पर तुम बिस्तर पर नहीं थे..। थीं तो , बस कुछ सिलवटें..। ट्रे बैड पर रखकर, मैं पैर मोड़कर उसपर ठोड़ी टिका कर बैठ गई। दो आँसू , मेरे गाल पर लुढ़क आए। आज तुम्हें गए ,पूरा एक महीना हो चुका था..। मुझे बादल-बिजली के शोर से बहुत डर लगता है..। पर पता नहीं कैसे, कल मैंने एक ही करवट में पूरी रात निकाल दी थी..। हाँ, मैं अकेली कहाँ थी..तुम थे न, पूरी रात मेरे साथ..। चाय की ट्रे,साइड टेबल पर रखकर..मैं सिलवट पड़ी चादर पर ,आँखें मूँदकर लेट गई। उस समय ज़हन में,बस यही गीत चल रहा था.. *पल भर ठहर जाओ,दिल ये सँभल जाए, कैसे तुम्हें रोका करूँ.... अगर तुम साथ होओओओ..।* 
--सुनीता डी प्रसाद💐

#yqdidi #yqtales #बस,यूँ ही चलते-चलते..४ रविवार का दिन। बीती रात,बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट के बीच बारिश की झड़ी लगी रही..। सुबह भी यही मंजर था..। मेरा कतई मन नहीं था कि चाय बनाने के लिए भी उठूँ..। तुम बगल में मस्त सो रहे थे, आड़े-तिरछे..। मन हुआ ,जगाकर कहूँ कि चाय बना लाओ..। फिर पता नहीं क्या सोचते हुए किचन की ओर बढ़ गई..। लौटी तो ट्रे में दो कप चाय थी..। पर तुम बिस्तर पर नहीं थे..। थीं तो , बस कुछ सिलवटें..। ट्रे बैड पर रखकर, मैं पैर मोड़कर उसपर ठोड़ी टिका कर बैठ गई। दो आँसू , मेरे गाल पर लुढ़क आए। आज तुम्हें गए ,पूरा एक महीना हो चुका था..। मुझे बादल-बिजली के शोर से बहुत डर लगता है..। पर पता नहीं कैसे, कल मैंने एक ही करवट में पूरी रात निकाल दी थी..। हाँ, मैं अकेली कहाँ थी..तुम थे न, पूरी रात मेरे साथ..। चाय की ट्रे,साइड टेबल पर रखकर..मैं सिलवट पड़ी चादर पर ,आँखें मूँदकर लेट गई। उस समय ज़हन में,बस यही गीत चल रहा था.. *पल भर ठहर जाओ,दिल ये सँभल जाए, कैसे तुम्हें रोका करूँ.... अगर तुम साथ होओओओ..।* --सुनीता डी प्रसाद💐